एक किसान ने भगवान से कहा

by - 11:54 PM


एक किसान की कहानी जरुर पढ़े आज के इस मौसम में......      
"नन्हें पौधे भी मुश्किलों से लड़कर ऊँचे बढ़ते हैं"
एक किसान ने भगवान से कहा
‘‘तुम्हें खेती के बारे में क्या मालूम है? जब मन में आता है, बारिश कराते हो। गलत समय पर हवाओं को भेजते हो। तुम्हारी वजह से हम बर्बाद हो गए हैं। ऐसे काम किसी किसान को सौंपकर निश्चित रह सकते हैं न?’’
भगवान ने फौरन मान लिया, ‘‘ऐसी बात? ठीक है, आइंदा प्रकाश, बारिश, हवा सब तुम्हारे नियंत्रण में रहेंगे।’’ ऐसा वरदान देकर वे वहाँ से निकल गए।
किसान की खुशी का कोई ठिकाना नहीं। अगला मौसम आया।
किसान ने आज्ञा दी, ‘वर्षा, बरसो। पानी बरसा। जब रुकने के लिए कहा, बारिश रुक गई। उसने गीली माटी को जोत डाला। हवा को यथावश्यक गति पर चलवाकर खेत में बीजों को बिखेर दिया। वर्षा, धूप, हवा सभी ने उसका हुक्म माना। खेत में जहाँ देखो हरियाली, धान की बालियाँ लहलहा उठीं। खेत देखने में रमणीय लगा।
फसल काटने का समय आया तो किसान ने एक बाली को काटकर उसे खोल के देखा। अंदर दाना नदारद। अगली और फिर दूसरी यों एक के बाद एक बालियों को काट कर उन्हें खोलकर देखा। किसी में भी दाना नहीं मिला।
चुनौतियाँ ही पौधों की जड़ों को मज़बूत बनातीं हैं
‘‘अरे ओ भगवान!’’ उसने गुस्से में भरकर भगवान को बुलाया और पूछा, ‘‘मैंने वर्षा, धूप, हवा सभी का सही अनुपात में ही तो प्रयोग किया। फिर भी फसल बेकार हो गई, क्यों?’’
भगवान मुस्कराए। बोले, ‘‘प्रकृति के तत्व जब मेरे संचालन में रहे, हवा जोर से चलती थी। तब धान के छोटे-छोटे पौधे जिस तरह बच्चे माँ की छाती को कस कर पकड़ लेते हैं, वैसे ही धरती के अंदर अपनी जड़ों को कसकर पकड़ लेते। बारिश कम होने पर जड़ों को पानी की तलाश में चारों तरफ भेजते। संघर्ष की स्थिति में ही वनस्पतियाँ अपनी रक्षा करते हुए मजबूती से बढ़ती हैं। तुमने उनके लिए सब कुछ आसान कर दिया था, ऐसे में तुम्हारे पौधों पर सुस्ती छा गई। भले ही वे लहलहाकर समृद्ध हुए, लेकिन उन्हें स्वस्थ दानों को पैदा करना नहीं आया।’’

‘‘नहीं चाहिए मुझे तुम्हारी वर्षा और हवा! इन्हें तुम्हीं अपने पास रख लो।’’ यों कहकर किसान ने फिर से यह काम भगवान को सौंप दिया........
                                                                                      

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