हम और हमारे नई पीढ़ी

by - 10:44 AM


                                            यह सवाल मुझे बेचैन कर ही रहा है की समाज किस ओर गतिमान है इसकी और भी संकेत कर रहा हैआज समाज ने सफलता के कुछ पैमाने तय कर रखे है । कुछ की चर्चा कर देता हूं:
(1.) सरकारी नौकरी लगी हो ।
(2.) शहर में सबसे सुंदर घर हो
(3.) सारे काम नौकर करें
(4.) घूमने-फिरने को महंगी गाड़ियां हो
(5.) हाथ में I-Phone हो
(6.) और अगर एक वोडाफोन कुत्ता हो तो मजे अलग, इत्यादि।
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क्या इन सब पैमानों को प्राप्त कर लेना जिंदगी का असली अर्थ है और इसे ही सफल जिंदगी की तरह देखा जाएगा। मेरे अनुसार यह सब भोग की तृष्णा को शांत कर सकते हैं और इससे ज्यादा कुछ नहीं। जिंदगी का अर्थ बहुत व्यापक है इसे जिया जाना चाहिए। लेकिन आज हमारे समाज ने जिंदगी को जो भी दिशा दी है वह आज नहीं तो क्या कल जरूर घातक होगी। आप देख सकते हैं हमारे आस-पास अनेकों ऐसी घटनाएं घटित होती रहती है, जो इस बात का अंदेशा करवा ही देती है। कोई प्रेमिका के लिए मर रहा है तो कोई प्रेमी के लिए मर रही है। कोई समाज द्वारा तय सफलता प्राप्त न करने पर मर रहा है तो कोई असफलता के डर से मर रहा है। कोई लज्जित होने के डर से मर रहा है तो कोई लज्जित होकर मर रहा है। मैं पूछना चाहूंगा आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? जीवन इतना सस्ता तो नहीं है भई! जितनी कीमत आपने लगाई है। मेरा तो अमूल्य है। समाज आज मृगतृष्णा के फेर में है, इसमें को शंका वाली बात नहीं है। जब यह मृगतृष्णा बढ़ जाती है तो समाज को गर्त में धकेल देती है। प्रमाण देना चाहूंगा:
(1.) 8 नंबर के दो सवाल छूटे, 12वीं के छात्र ने छठी मंजिल से कूदकर जान दी।
(2.) IIT या PMT क्लियर नहीं कर पाया तो पंखे से लटककर आत्महत्या की
और भी बहुत सारी हेडलाइंस है जो सोचने पर मजबूर करती है। यह विचलित कर देने वाला माहौल कैसे तैयार हो गया? आखिर 100 में से 100 नंबर लाना,
पीएमटी क्लियर करना,
आईआईटी क्लियर करना जैसे भयावक लक्ष्य तह कर कौन देता है?

लक्ष्य तय करना बुरा नहीं है लेकिन उसे प्राप्त करने के लिए दबाव ना डालकर अभिरुचि का पिक बिंदू लिया जाए तो उन लक्ष्यों को हासिल करने में कितना मजा आता है, अंदाज लगाना असंभव है। और वो लक्ष्य हासिल भी होते है। 100 में से 100 नंबर भी आते हैं और पीएमटी, आईआईटी जैसी एग्जाम भी क्लियर होती है। मायने ये रखता है लक्ष्य तय करने वाला कौन है और कैसा है। वो कुछ चुनिंदा लोग जो ज्यादा शिक्षित है और अपनी संतानों के लिए प्रेशर कुकर बने हुए हैं, जरा समझिए समझने का वक्त है। मेरी ऐसी लोगों से भी मुलाकात हुई है जिनके पास डिग्रीयां तो नहीं लेकिन वो सभ्य शिक्षित जरूर है। उनके लक्ष्य और देने का तरीका वाकई अद्भुत है। जब उनके द्वारा कोई लक्ष्य दिया जाता है तो दिल से सिर्फ एक ही आवाज निकलती है प्राप्त कर लूंगाऔर एक नई ऊर्जा मिलती है, आशा है वह ऊर्जा लक्ष्य तक पहुंचा ही देगी। हां सुनो प्रेशर कुकरों ये लक्ष्य कोई दूसरे नहीं है, वही है जो आप अपनी संतानों से पूरा करवाना चाहते हो।
अब देखिए लक्ष्य एक है लेकिन मार्गदर्शकों की है विषमता किसी को लक्ष्य से ऊपर ले जाती है तो किसी से जिंदगी छीन लेती है। अब आपको तय करना है कौन सा मार्गदर्शक बनना है। अंत में मेरा सभी प्रतिभागियों से निवेदन है आप अपना हौसला मत खोइए और क्षणिक फैसलों से खुद को बर्बाद मत कीजिए। शिक्षा को अभिरुचि बनाकर इसका सेवन कीजिए यह लाभप्रद है। अगर इसे बोझ बना लिया तो यही अमृत विष है। हमें अपने हौसले बुलंद रखने हैं और उनमें जान फूंकने वालों से मिलते रहना है। लक्ष्य तो प्राप्त करने ही है लेकिन जोश और उल्लास के साथ। आत्महत्या कर जिंदगी का सफर मत रोक लेना कभी…..
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इसलिए हँसते रहे मुस्कुराते रहे
जीवन तनाव नहीं संघर्ष है
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