अपने बच्चों की सुरक्षा

by - 10:47 AM


आज के इस आधुनिक युग में जहाँ एक ओर अपनी व्यस्त दिनचर्या है
तो दूसरी ओर अपने बच्चों के भविष्य की चिंता...आज के इस दौर में हर किसी को यह पढना चाहिए.....
अगर हम पहले की बात करे, तो उस समय घर की जिम्मेदारियाँ बटी हुई थी.
जहाँ पिता बच्चों की सुविधा के लिये धन अर्जित करने के लिये काम करते थे, तो वही माता घर पर रहकर अपने बच्चों का ध्यान रखती थी। परंतु आज समय समय बदल चुका है। आज के समय में जहाँ साधन बड़े है, तो उनपर होने वाला खर्च भी बढ़ा है। आज पिता के साथ-साथ माता को भी बाहर की इस भाग दौड़ में उतरना पढ़ा है। इसका सबसे गहरा असर घर के बच्चों पर पढ़ा है। घर में बच्चों को माता पिता की एक झलक के लिये सुबह से शाम तक का इंतजार करना होता है. जब वे स्कूल से घर लौटते है, तो उन्हे अपनी बातों को बताने के लिये भी धैर्य रखना पढ़ता है। यह सब बाते आपके समक्ष रखने का एक मात्र कारण ये है कि आज के समय में बच्चों के साथ होने वाली कठिनाइयों को आपके सामने लाया जाये। ताकि आप उनपर विचार कर सकें और अपने बच्चे का बेहतर भविष्य तराश सके...
आज के समय में हर माता-पिता की एक या दो संतान होती है। माता-पिता का कर्तव्य होता है कि उन्हे सही दिशा प्रदान करे ताकि वे अपने भविष्य का बेहतर निर्माण कर पाये। अब बात उठती है बेहतर भविष्य की तो उसके लिये आवश्यक होगा कि आप बच्चों को बाल्यकाल से ही अच्छे संस्कार दें, क्यूकी एक मज़बूत निव पर ही सुदृढ़ भवन खड़ा किया जा सकता है
अगर हम बच्चों की बात करे, तो हर संतान, हर उम्र में अपने माता पिता के लिये नासमझ ही होती है। और ये सही भी है ,उम्र के एक पढ़ाव तक हर संतान को अपने माता-पिता की समझाइश और उनके अनुभव की आवश्यकता पढ़ती है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण है, एक शिशु को जन्म देंने वाली माँ से ले सकते है। एक माँ जिसने अभी-अभी एक शिशु को जन्म दिया है, परंतु उसे फिर भी इस समय अपनी माँ या अपनी माँ रुपी सास के सहयोग और परामर्श की सबसे अधिक जरूरत पढ़ती है, ताकि वह अपने शिशु को संभाल पाये।
उम्र के हर पढ़ाव पर हर बच्चे को अलग तरह के प्रोत्साहन की जरूरत होती है। माता-पिता को चाहिए कि वो अपने बच्चे की जरूरत और मानसिक स्तिथि को समझ कर उसका सही तरीके से सहयोग करे। ताकि आगे चलकर बच्चा एक सफल, सुद्रढ़ और आकर्षक व्यक्तित्व का इंसान बन पाये..
6 से 16 साल की उम्र :-यह वह समय है, जब बच्चों को अपने माता पिता के सहयोग की सबसे ज्यादा जरूरत होती है। चाहे वह स्कूल का एक्जाम हो या वार्षिक उत्सव या कोई अन्य एक्टिविटी बच्चे बिना माता-पिता के सहयोग के नहीं कर पाते। और इस समय माता-पिता का सहयोग उन्हे एक अलग ही प्रोत्साहन देंता है।
इस उम्र में आपको क्या बातें ध्यान रखनी चाहिए :
बच्चे की हर एक्टिविटी पर नजर रखे -: माता-पिता ही वह पहले इंसान है, जो अपने बच्चों के बारे में सबकुछ जानते है। उन्हे सभी बातों जैसे आपके बच्चे के स्कूल में क्या चल रहा है, उनकी पैरेंट्स मीटिंग कब है, आपके बच्चों को कौनसा सब्जेक्ट कठिन लगता है आदि बातों का ध्यान रखना चाहिए।
बच्चों की बातों को कुशलता से सुने और उन्हे परखे -: अगर आपका बच्चा आपकों स्कूल से लौटने के बाद अपनी दिनचर्या बताता है, तो उसे ध्यान से सुने और उसे समझने का प्रयास करे कि उसने दिनभर क्या किया। उसका आकर्षण किस ओर है और उसे क्या करना अच्छा लगता है।
बच्चों पर अपनी इच्छाओं का दबाव न ड़ाले -: अन्य बच्चों के मार्क्स देंखकर अपने बच्चों पर दबाव ना बनाये, हो सकता है आपके बच्चे की क्षमता अलग हो और वह आपकी इच्छाओ की पूर्ति करने में समर्थ ना हो।
बच्चों की तुलना अन्य बच्चों से न करे -: हमेंशा किसी अन्य बच्चे की तुलना अपने बच्चे से ना करे, इससे उसके मन में ईष्या जन्म लेती है या हो सकता है उसका आत्मविश्वास कम होने लगे और वह अपने आप को अन्य बच्चों से कमजोर समझने लगे।
बच्चे को उचित प्रोत्साहन दें -: जब बच्चा किसी काम में सफल हो, तो उसका उचित प्रोत्साहन करें और जब वह असफल हो तब भी उसके साथ खड़े रहकर उसे मार्गदर्शन दें।
बच्चे का अच्छा सोशल नेटवर्क डेव्ल्प करने में मदद करे -: यही वह वक़्त है, जब बच्चे बाहर निकलते है, उनके दोस्त बनते है , तो अप्रत्यक्ष रूप से उनपर ध्यान दें .इस बात का ध्यान दें, कि कही वे किसी गलत आदत का शिकार तो नहीं हो रहे। और हा ध्यान रखिये यह ध्यान कही दखल अंदाजी ना बन जाए, ताकि बच्चे आपसे चिढ़ने लगे।
बच्चे की पढ़ाई और अन्य चीजों में दिलचस्पी ले -: इस समय बच्चों को पढ़ाई में भी माता-पिता के सहयोग की आवश्यकता होती है, तो इस बात का ध्यान रखे। उनके पढ़ने का टाइम टेबल बनाये, जब वह पढ़ रहे हो टीवी बंद रखे और उनके प्रोजेक्ट एक्टिविटी में उनका साथ दें। आवश्यकता हो तो जब वे पढ़ रहे हो तो उनके साथ बैठे।
बच्चे का उत्साह बढ़ाने के लिए नयी-नयी चीजें प्लान करे -: बच्चे की हर छोटी से छोटी उपलब्धि में उसका प्रोत्साहन करे, जैसे एक्जाम में अच्छे नंबर आने पर गिफ्ट दें या एक फ़ैमिली ट्रिप प्लान करे ताकि बच्चों का उत्साह बना रहे।

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