कर्म ही सर्वश्रेष्ठ है कर्म की ही विजय है
हम जैसे है,वैसे हम दिखाई नहीं पड़ते
हम जैसे दिखते है, वैसे कभी नहीं थे.
ये सत्य है आज के मानव का
हम शांति चाहते है
हम खुशियाँ चाहते है
हम अपनों का प्यार चाहते है
हम दुनियाँ के नजरों में अच्छा बनना चाहते है
हम नि:स्वार्थ सेवा भी करना चाहते है,
लेकीन.......................
हम विवेक भी खो देते है
हम बुराई भी कर लेते है
हम हत्या लुट भी कर लेते है....
आख़िर हम है कौन
हम तुम ही है,और तुम हम
यह संसार भी हम ही में समाया है.
अपेक्षा भी हम ही करते है
और उपेक्षा भी हम ही करते है
भटकते रहते है
सारी उम्र कुछ पाने के लिए
पाते भी है पर कई लोंग से बिछुड़ जाते है
सभी सपने भी देखते कई का पुरा हो जाता तो
बहुतों का टूट भी जाता है....
“कर्म ही सर्वश्रेष्ठ है
कर्म की ही विजय है”
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