मैं बहरा था, बहरा हूँ और बहरा रहूँगा
एक बार एक सीधे पहाड़ में चढ़ने की प्रतियोगिता
हुई. बहुत लोगों ने हिस्सा लिया. प्रतियोगिता को देखने वालों की सब जगह भीड़ जमा हो
गयी. माहौल में सरगर्मी थी , हर
तरफ शोर ही शोर था. प्रतियोगियों ने चढ़ना शुरू किया। लेकिन सीधे पहाड़ को देखकर
भीड़ में एकत्र हुए किसी भी आदमी को ये यकीन नहीं हुआ कि कोई भी व्यक्ति ऊपर तक
पहुंच पायेगा …
हर तरफ यही सुनाई देता …“ अरे ये बहुत कठिन है. ये लोग कभी भी सीधे पहाड़ पर नहीं चढ़ पायंगे, सफलता का तो कोई सवाल ही नहीं, इतने सीधे पहाड़ पर तो
चढ़ा ही नहीं जा सकता और यही हो भी रहा था, जो भी आदमी कोशिश
करता, वो थोडा ऊपर जाकर नीचे गिर जाता, कई लोग दो -तीन बार गिरने के बावजूद अपने प्रयास में लगे हुए थे …पर भीड़ तो अभी भी चिल्लाये जा रही थी, ये नहीं हो
सकता, असंभव और वो उत्साहित प्रतियोगी भी ये सुन-सुनकर हताश
हो गए और अपना प्रयास धीरे धीरे करके छोड़ने लगे,
लेकिन उन्हीं लोगों के बीच एक प्रतियोगी था, जो बार -बार गिरने पर भी उसी जोश के साथ ऊपर पहाड़ पर चढ़ने में लगा हुआ था
….वो लगातार ऊपर की ओर बढ़ता रहा और अंततः वह सीधे पहाड़ के
ऊपर पहुच गया और इस प्रतियोगिता का विजेता बना. उसकी जीत पर सभी को बड़ा आश्चर्य
हुआ, सभी लोग उसे घेर कर खड़े हो गए और पूछने लगे, तुमने ये असंभव काम कैसे कर दिखाया, भला तुम्हे अपना
लक्ष्य प्राप्त करने की शक्ति कहाँ से मिली, ज़रा हमें भी तो
बताओ कि तुमने ये विजय कैसे प्राप्त की ?
तभी
पीछे से एक
आवाज़ आई … अरे उससे क्या पूछते हो, वो तो बहरा है तभी उस
व्यक्ति ने कहा कि हर नकारात्मक बात के लिए -
" मैं बहरा था, बहरा हूँ और बहरा रहूँगा ".
"दोस्तों, हम
सब के अंदर असीम सम्भावनाएं होती हैं और अपना लक्ष्य प्राप्त करने की क्षमताएँ भी
होती हैं लेकिन हम अपने परिवेश और मौजूदा वातावरण में फैले नकारात्मकता की वजह से
खुद को काम आंकते हैं और हिम्मत हार जाते हैं, और इसी वजह से
अपने बड़े से बड़े और छोटे से छोटे सपनों के साथ समझौता कर लेते हैं और उन्हें बिना
पूरा किये ही जिंदगी गुजर देते हैं।
दोस्तों ये कहानी हमें यही सिखाती है की आईये
हम,
हमें कमजोर बनाने वाली हर एक आवाज को अनसुना करें और उसके प्रति
बहरे हो जाएँ तथा हर उस दृश्य के प्रति अंधे हो जाएँ जो हमें सफलता के शिखर तक
पहुँचने से रोकते हैं..."
ये कहानी आपको कैसी लगी, हमें जरूर बताएं
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