हम रहें ना रहें
पतझड़ बने जिन्दिगी को
बसंत के जैसा बनाओं
सावन की बूंदों में मिलकर जग को नहाओं
दीपक की लौ बन कर रौशनी दिखाओं....
क्या ऐसा कर पाओगे....?
अगर ऐसा हुआ तो तुम्हें मुक्ति मिलेगी
क्यों कि तुम्हीं में है ये संसार
प्रतिबिम्ब हो उन सबों का जो ये कर गए...
क्या रखा है बंदूकों और बमों में
क्या रखा है जात-पात में
तुम डराते हो इंसान को
मारते भी हो और
खुद भी मर जाते हो....
चलो अपनी जिन्दिगी को सफल बनाएं
चलो सभी को प्यार बांटे,खुशियाँ दें
न जाने कल हम रहें ना रहें.....
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