ऐ किताब काश तुम मेरी माशूक़ा होती

by - 11:09 AM

 ऐ किताब

ऐ किताब तुझसे नज़र मिलाने से मैं घबराता क्यों हूं

तुझे छोड़ कर हर बातों को दिमाग में मैं दोहराता क्यों हूं

एक तरफ़ बिस्तर की पुकार

एक तरफ़ नींद की दुलार

एक तरफ़ फ़िल्मों का प्यार

एक तरफ़ लिखने की गुहार

एक तरफ़ तेरे ख़्यालों की भरमार

इन सब का गला दबोचकर

बैठता हूं मैं पढ़ने थक हार

फ़िर ये सारे जिन्हे मैंने गला दबोच कर मार गिराया था

वे मेज़ के सामने मेरा ध्यान भटकने का इंतज़ार करते हैं

और जब तक मैं उन्हें वापस जीवित न कर दूं

वे वहां से टस से मस नहीं होते

ऐ किताब काश तुम मेरी माशूक़ा होती

तब शायद मैं तुम्हे घंटों पढ़ता, लिखता और सोचता


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