इंसान का अस्तित्व खतरे में

by - 9:59 AM


हॉकिंस ने करीब एक साल पहले कहा था कि हमारे पास सिर्फ 1000 वर्ष है, लेकिन हाल ही में उन्होंने बीबीसी की एक डॉक्यूमेंट्री के लिए दिये इंटरव्यू में इस समय को घटाकर 100-200 साल कर दिया। हॉकिंस ने किन कारणों से खतरे की घंटी को इतने जोर से बजाया है, उस पर एक नज़र डालनी चाहिए।

विज्ञान और धार्मिक भविष्यवाणी में एक बड़ा अंतर यह है कि विज्ञान में भविष्यवाणी पर हमेशा बहस की गुंजाइश होती है, चाहे वह कितने भी बड़े वैज्ञानिक ने की हो। जबकि धार्मिक भविष्यवाणी अगर कोई बड़ा धार्मिक विद्वान करता है तो इसमें बहस की गुंजाइश न के बराबर होती है। विज्ञान की दुनिया में कोई भी बड़े से बड़े वैज्ञानिक की कही बात को गलत साबित करने की कोशिश कर सकता है, उसे जाति या धर्म से बाहर नहीं किया जाएगा। यह एक बड़ा अंतर है विज्ञान और धर्म में।
लगभग हर धर्म में ये अवधारणा मौजूद है कि 'भगवान या खुदा ने यह पूरा ब्रह्मांड, पूरी सृष्टि और मानव जाति की रचना की है, और वहही एक दिन इसे नष्ट भी करेगा। और वह दिन कयामत या प्रलय का दिन होगा। इस विश्वास पर चर्चा या बहस की कोई गुंजाइश नहीं है।
हॉकिंस ने अपने बयान में एक तरफ तो खतरे से आगाह किया है और दूसरी तरफ कारणों को भी बताया है, इसलिए दोनों पर चर्चा शुरू हो गई, जो होनी ही चाहिए। क्योंकि यहां सवाल विश्वास का नहीं, विज्ञान का है। खतरे के बारे में उन्होंने कहा कि बहुत दिन हो गए कोई ग्रह पृथ्वी से नहीं टकराया है, और अब इसकी संभावना बढ़ती जा रही है कि कोई ग्रह पृथ्वी से टकराएगा और ऐसी तबाही मचेगी कि हमारा अस्तित्व ही मिट जाएगा। एक अच्छे वैज्ञानिक की तरह उन्होंने बड़े नपे तुले शब्दों में यह भी कहा कि "हालांकि इसकी संभावना बहुत कम है कि यह एक साल में हो, लेकिन समय के साथ यह संभावना बढ़ती जा रही है और 1000 से 10000 साल में यह टकराव होना चाहिए।" इन कारणों की सूची में जलवायु परिवर्तन, जनसंख्या का बेतहाशा बढ़ना, मानव जाति द्वारा पैदा किए जा रहे कीटाणुओं और कृत्रिम चेतना शामिल हैं।

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