जीना तो है चाहे जैसे जिए हँस कर जिए या मर के जिए
हमें अब एक विकल्प की तलाश
करनी होगी
जो इस राष्ट्र के लिए
सोचें
हमारे युवा पीढ़ी के लिए
सोचें
क्योंकि राम मंदिर में
हमारे युवा पीढ़ी
पंडित बन पूजा नहीं करा
सकते।
उस लागत से एक विकास का
मार्ग निकल सकता था
कई उद्योग लग सकता था
कई बेरोजगार को नौकरी लग
सकता था......
गरीब तो जी रहें हैं अभी
लेकिन कब तक....
मध्यम वर्ग को कब किस रात
खाना नसीब नहीं होता
ये पड़ोसी तक को पता नहीं
चलता
क्यों की उसे अपनी
प्रतिष्ठा की चिंता है
वक़्त बदल रहा है......
राफेल 4
July 1986 को ही France
में बन के अस्तित्व में आ चूका था
आज हम इसे देख कर बहुत खुश
हो रहे है
अपने मोबाइल को अपडेट करना
नहीं भूलते
लेकिन इस सिस्टम को नहीं
आज बिक रहा है रेलवे,एयरपोर्ट,बीएसएनएल
और बड़े बड़े सेक्टर भी
फिर भी हम चुप हैं
क्यों
आखिर क्यों
कई विकल्प नहीं हैं
ना.....
कितना मजबूर है हम
और लाचार भी
भूख से मरते लोगों को
देखते हैं
पर कुछ नहीं कर पाते
क्योंकि हम खुद अपने पेट
की भूख
अपने परिवार के पेट की उस
भूख के लिए
निकलते है.......
बेरोजगारी अपने सीमा रेखा
पार कर चुकी
कई कंपनी बंद हो रही
कुछ बंद होना बाकी हैं
स्टाफ की छटनी कुछ हो चूका
कुछ होना अभी बाकी हैं
आत्महत्या का वह दौर अभी
बाकी हैं........
फिर भी
जीना तो है चाहे जैसे जिए
हँस कर जिए या मर के जिए......
सच में हम कितने विवश हैं
कितने लाचार है...
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