हमारी पहचान
जीवन में कुछ पल से हमें समझोता करना परता है
न चाह के भी हमें जीना परता है
चाहते बहुत होती है हमारे अन्दर
हर चमकने वाला चीज सोना नहीं होता,
बिकती है सब कुछ बाज़ार में
पर कुछ सामान का खरीदार नहीं मिलता.
दफ़न कर दो आपने जज्बात को
कुचल डालो अपने भवना को
क्यों की आज के इस दौर में इसकी पहचान नहीं मिलता.
रह जाती है बस इंसानियत
जिसकी पहचान कभी नहीं मिटती
मिट जायेगे हम पर हमारी पहचान नहीं मिटती
पर हमारी पहचान क्या है?
(इसे खुद बनाना पड़ता है).
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