राजीव दीक्षित को किए श्रद्धासुमन अर्पित

by - 7:25 AM




भारत स्वाभिमान न्यास के राष्ट्रीय सचिव और प्रसिद्घ वक्ता राजीव दीक्षित नहीं रहे। सोमवार की रात ह्वदयाघात से उनका बीएसआर अपोलो हास्पिटल भिलाई में निधन हो गया। वे 44 वर्ष के थे। मंगलवार की सुबह उनका पार्थिव शरीर रायपुर के मेडिकल कॅालेज में लाया गया। यहां आयोजित शोकसभा में राज्यपाल शेखर दत्त, मुख्यमंत्री डॉण् रमन सिंह सहित कई लोगों ने श्रद्घांजलि दी।
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जनवरी में बाबा रामदेव की भारत जगाओ छत्तीसगढ़ यात्रा की तैयारी के सिलसिले में सोमवार को बेमेतरा से सभा को सम्बोधित कर लौट रहे राजीव दीक्षित का अचानक स्वास्थ्य खराब हो गया। उन्हें शाम 645 बजे जवाहरलाल नेहरू चिकित्सालय एवं अनुसंधान केन्द्र सेक्टर.9 भिलाई में भर्ती कराया गया। इसके बाद डॉण् रत्नानी एवं उनकी टीम ने मरीज को अपनी देखरेख में ले लिया और उपचार के लिए रात्रि 11 बजे मरीज को एम्बुलेंस से अपोलो बीएसआर हास्पिटल रेफर किया गया। वहां कार्डियक सर्जन दिलीप रत्नानी व चिकित्सकों की टीम ने उन्हें वेंटीलेशन में सघन उपचार शुरू किया।
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आईसीयू में उनके निरंतर कम रक्तचाप व शुगर को कम करने का चिकित्सकों ने प्रयास किया। इसके बाद ही कार्डियक एंजियो चिकित्सा संभव थीए किंतु दूसरा ह्वदयाघात आने से भरसक प्रयास के बाद भी उन्हें बचाया नहीं जा सका। रात 11:55 बजे डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। इसके बाद उनकी पार्थिव देह को केमिकल पेसिंग के लिए अम्बेडकर अस्पताल रायपुर लाया गया। यहां से चार्टर प्लेन से बाबा रामदेव के पतंजलि योग मुख्यालय हरिद्वार लाया गया । उनका अंतिम संस्कार 1 दिसंबर को कनखल हरिद्वार में हुआ । उनके अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिये देश भर से दस हजार स्वदेशी आंदोलन के कार्यकर्ता कनखल हरिद्वार पहुंचे ।
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श्री दीक्षित ने विदेशी मल्टीनेशनल कंपनियों की जीरो टेक्नालाजी उत्पादों के खिलाफ अभियान छेड़ा था। वे स्वदेशी वस्तुओं के प्रचार में काम कर रहे थे। उन्होंने आजादी बचाओ आंदोलन संस्था की स्थापना की। यह संस्था देशभर में विदेशी वस्तुओं के विरोध में काम कर रही है ।
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श्री राजीव दीक्षित के असामयिक निधन से देश ने उच्चकोटि का एक देशभक्त और अद्भुत वक्ता खो दिया । वे 44 वर्ष के थे और उन्हें आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत का पालन किया । उन्होंने स्वदेशी के माध्यम से देशसेवा का बीड़ा उठाया था । इस महायज्ञ में विघ्न न पड़े इसलिये उन्होंने विवाह नहीं किया । वे अपने हाथ से काती खादी का कुर्ता पैजामा धारण करते थे । यह कैसी विडंबना है कि भारत मॉं के सच्चे सपूतों को बीच रास्ते में अपनी जीवनयात्रा समाप्त करनी पड़ती है ।

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