आपकी उपयोगिता

by - 11:04 AM


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पढ़ाई के लिए स्कूल में मेरा दाखिला सीधे चौथी कक्षा में हुआ था। मैंने पहली, दूसरी, तीसरी कक्षा का मुंह ही नहीं देखा। क्योंकि मैं स्कूल जाने से डरता था तो पिताजी ने मेरा नाम उस कक्षा में लिखवा दिया था, जिसमें दीदी पढ़ती थी। 
“संजू दीदी के साथ स्कूल जाएगा।”
मेरा मन दीदी में लगता था, स्कूल में नहीं।
दीदी कलम से लिखती थी। मुझे लिखने के लिए पेंसिल मिली थी। मैंने पिताजी से पूछा था कि मेरे पास कलम क्यों नहीं? पिताजी ने कहा था, तुम छोटे हो। छोटे बच्चे कलम से नहीं लिखते। लिखावट बिगड़ जाती है। 
हालांकि जब सलाना परीक्षा के समय तक एक फाउंटेन पेन की व्यवस्था मेरे लिए भी हो गई थी। पर संजय सिन्हा ने परीक्षा में उस पेन का इस्तेमाल किया ही नहीं। डर था कि स्याही खत्म हो जाएगी।
बताने की ज़रूरत नहीं कि संजय सिन्हा चौथी कक्षा में फेल हो गए थे। फेल होने का मुझे रत्ती भर अफसोस नहीं था। अफसोस था दीदी का साथ क्लास में छूट जाने का।
खैर, तब तक मैं थोड़ा आत्मनिर्भर हो गया था। मेरा मन कॉपी, पेन में लगने लगा था। मैं पेन को बहुत संभाल कर रखता था। उसकी सफाई करता था, स्याही भरता था। एक स्याही सोख्ता (गीली स्याही को सोखने वाला कागज़) अपने पास रखता था। 
मेरे मन में था कि ये पेन जीवन भर मेरे पास रहेगा। वो पेन आठवीं तक मेरे पास रहा भी। फिर खो गया। 
मैं बहुत उदास हुआ था। जब पिताजी को पता चला तो उन्होंने अपना फ़ाउंटेन पेन मुझे दे दिया। उनके पास ‘हीरो’ पेन था, जिसकी निब छोटी सी थी, ढक्कन सुनहरा था। उसमें स्याही भरना भी आसान था। 
मुझे लगा कि संसार मुझे मिल गया है। 
आप हैरान होंगे कि वो पेन आज भी मेरे पास है। बाद में कई पेन आए गए लेकिन उसे मैंने संभाल कर रखा। 
उन्हीं दिनों की बात है। मेरे एक दोस्त को कहीं से पता चला कि जापान नामक कोई देश है, वहां के लोग पेन को यूज एंड थ्रो करते हैं। 
“ये यूज एंड थ्रो क्या है भाई”, मां के संजू ने दोस्त से पूछा था।
“इस्तेमाल करो और फेंक दो।” 
“तब तो जापान के लोग बहुत अमीर होते होंगे। एक बार लिखो और फेंक दो। पूरा शहर पेन ही पेन से भरा होगा। क्या कमाल की बात है।”
मैं हैरान था। सोच नहीं पाया नहीं था कि ऐसा होता होगा। पहले कलम खरीदते थे। निब खरीदते थे। स्याही खरीदते थे। कभी कलम खराब हो जाए तो दुकान पर उसे ठीक कराते थे। पर कलम बदल लेंगे, नहीं सोचते थे। यूज एंड थ्रो तो कमाल का कांसेप्ट था। 
समय बदला। धीरे-धीरे भारत में वो तकनीक जापान से आने लगी। यूज एंड थ्रो। 
जब तक लिख पाए, लिखते रहे फिर उसे हमने फेंक दिया। हमने ये विद्या जापान से ली, या चीन से पता नहीं। मेरा पहला फ़ाउंटन पेन कैम्लीन कंपनी का था। दूसरा हीरो। कैम्लीन भारत की कंपनी थी। हीरो चीन की।
मेरे पास कभी जापान वाला पेन कभी आया ही नहीं। बस जानकारी आई थी कि लोग वहां पेन खरीदते हैं, इस्तेमाल करते हैं, फेंक देते हैं। 
मेरे मन में जापान को लेकर जिज्ञासा तो हुई थी, लेकिन अफसोस बहुत हुआ था। यूज़ एंड थ्रो क्यों? 
ख़ैर कहानी लंबी करने का क्या फ़ायदा?
संजय सिन्हा को कहानी सुनानी है यूज़ एंड थ्रो की। जैसा होता है, जैसा होना था हमारे पास वो तकनीक चली आई। इस्तेमाल करें, छोड़ दें।
मुझे लगता है यूज एंड थ्रो का पहला कांसेप्ट पेन के साथ ही आया था। फिर ये धीरे-धीरे हर उत्पाद का अभिन्न अंग बन गया। ध्यान रहे ये विद्या पूरब से आई है, पश्चिम में आज भी चीज़ सँभालने का कांसेप्ट है।
अमेरिका में वीडियो तकनीक ज़िंदा है। डीवीडी तकनीक भी ज़िंदा है। मोबाइल आने के बहुत वर्षों बाद भी पेजर रहा। वहाँ लोग पुरानी कारें खूब सँभाल कर रखते हैं। पर हमारे यहाँ तो अब कार भी दस साल बाद कबाड़। चाहे गाड़ी चकाचक हो, पर फेंक दो।
बात यहीं तक रुकती तो कहानी क्यों लिखी जाती?
हमारे यहां ये कांसेप्ट इतना पॉपुलर हुआ कि धीरे-धीरे वो रिश्तों भी समाहित हो गया। आप् लाख हंसें, खुश हों, गाने गाएं पर सत्य यही है कि रिश्तों को इस्तेमाल करने और धकिया देने का जो कांसेप्ट हमारे यहां पनपा है वो और कहीं नहीं। आप कभी नहीं सुनेंगे कि दूसरे देश में नेता ने रात में पार्टी नहीं, विचारधारा बदल ली। वहां जो जैसा है, वैसा है। पर हमने तो यूज एंड थ्रो को जीवन का फ़लसफ़ा बना लिया है। बात भौतिक वस्तुओं की नहीं, बात इमोशन की है। अब हर जगह इस्तेमाल करो, फेंक दो चल रहा है।
रिश्ते उपयोग बन गए हैं।
संजय सिन्हा का ज्ञान- अपनी उपयोगिता बनाए रखिएगा। हर कोई संजय सिन्हा की तरह आठवीं में पिताजी के दिए फ़ाउंटेन पेन को संभाल कर नहीं रखता है।
#SanjaySinha
#ssfbFamily

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