इल्जाम

by - 8:48 AM

मेरी ही परछायिओं ने रोका है रोशनी को
इल्जाम कैसे दूं जिंदगी को
अकल मेरी मुझको ही जख्म दे गयी
इससे पहले की पहचान होती
आँसुवों ने धो दिया उनको
मैंने खुद ही गले लगाया है बेबसी को
इल्जाम कैसे दूं जिंदगी को'
कल्पना के कागज पे एक तस्वीर मैंने खिंची थी
कल्पना भी मेरी थी और तस्वीर में मेरा था
पर कलम किसी और की मांगी थी मैंने
मैंने ही हकीकत समझ लिया दिल्लगी को
इलजाम कैसे दूं जिंदगी को !!!!!!!!!!!

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