पहला अंतरिक्ष यात्री
अमेरिका ने 53 साल पहले,
1969 में चंद्रमा पर अपने ऐस्ट्रॉनॉट को उतार दिया था। नासा का अपोलो स्पेस क्राफ़्ट IBM के जिस कम्प्यूटर से संचालित हो रहा था, उसका प्रॉसेसर 0.043 MHz का था, उसकी RAM
64 KB की थी और नासा के इंजीनियरों ने जो प्रोग्राम इस स्पेस क्राफ़्ट को चलाने के लिए बनाया था, वो कुल 6 MB का था। कम्प्यूटर का बेसिक नॉलेज रखने वाले समझेंगे कि ये Configuration कितना कम होता है, आज 5000 रुपए के मोबाइल फ़ोन का प्रॉसेसर और मेमरी की कपैसिटी इससे कई लाख गुना ज़्यादा होती है।
आज के रुस और तब के USSR
चाँद पर इंसान को भेजने की जंग में अमेरिका से आगे था और वो अमेरिका के अपोलो से दस सो पहले 1959 में अपने स्पेस क्राफ़्ट लूना को भेज चुका था, लेकिन आख़िरी समय में हुए एक हादसे की वजह से वो अपने ऐस्ट्रॉनॉट को चाँद पर नहीं उतार पाया,
और फिर जब अमेरिका ने चाँद पर अपना झंडा गाड़ा तो USSR
ने अपने मून मिशन को ड्रॉप कर दिया।
लेकिन USSR ने आज से 38 साल पहले 1984 में भारत के राकेश शर्मा को हमारे देश का पहला अंतरिक्ष यात्री बनने का मौक़ा दिया था।
हालाँकि हमारा स्पेस प्रोग्राम भी बहुत पुराना है लेकिन हम आज तक अपने स्पेस यान में किसी भी भारतीय को स्पेस ले जाने में सफल नहीं रहे हैं।
आप सोचिए कि अमेरिका और रुस उस समय की उपलब्ध तकनीक यानि 0.043
MHz प्रॉसेसर और 64 KB की मेमोरी के दम पर 50-60 के दशक से चाँद पर पहुँच रहे हैं और हमने आज तक ख़ुद के दम पर एक भी व्यक्ति को अंतरिक्ष नहीं भेज पाए हैं।