अपने किये की सजा हम पाते हैं,रोज जीते हैं रोज मर जाते हैं,अपना गुनाह हमें स्वीकार नहींदूसरों पर उँगलियाँ हम उठाते हैं,क़त्ल भी कर देते हैं हमपर अपनी मौत से हम डर जाते हैं,आगे बढ़ने के लिए छल कपटभी कर लेते हैं हमदुसरों के लाशों पर अपना महल बना लेते हैं,अपना मुकद्दर हम...