यादों का सहारा कल तक जीने के लिए काफी था

by - 7:43 AM
यादों का सहारा कल तक जीने के लिए काफी था अब आँखों को नींद है कि आती नही अब जब गुजरता हूँ उन्ही वादियों से फिर कभी जो हसीं लगती थी कल तक वो अब दिल को भाती नही वो सांसों कि गर्मियां जेहन मै भी हैं अब भी बसीं पर अब क्या...

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गुनाहों का देवता

by - 1:07 AM
कौन सा गुनाह ? कैसा गुनाह ?किसी से जिंदगी भर स्नेह रखने का...और वो स्नेह अपनी पराकाष्ठा पर पहुँचने लगे तो उसका त्याग करने का...है ना अजीब बात !पर यही तो किया चंदर ने अपनी सुधा के साथ ।इस भुलावे में कि दुनिया प्यार की ऐसी पवित्रता के गीत गाएगी...प्यार भी कैसा..."सुधा घर...

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