मेरी ही परछायिओं ने रोका है रोशनी कोइल्जाम कैसे दूं जिंदगी कोअकल मेरी मुझको ही जख्म दे गयीइससे पहले की पहचान होतीआँसुवों ने धो दिया उनकोमैंने खुद ही गले लगाया है बेबसी कोइल्जाम कैसे दूं जिंदगी को'कल्पना के कागज पे एक तस्वीर मैंने खिंची थीकल्पना भी मेरी थी और तस्वीर में मेरा थापर...
मेरे साथ
by
hemantsarkar
- 9:40 PM
क्यूं कहते हो मेरे साथ कुछ भी बेहतर नही होतासच ये है के जैसा चाहो वैसा नही होताकोई सह लेता है कोई कह लेता हैक्यूँकी ग़म कभी ज़िंदगी से बढ़ कर नही होताआज अपनो ने ही सीखा दिया हमेयहाँ ठोकर देने वाला हैर पत्थर नही होताक्यूं ज़िंदगी की मुश्क़िलो से हारे बैठे होइसके...